प्रकृति ही भगवान हैं

💐💐 बिन प्रकृति के 💐💐
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बिन बूंदों के…… बरसात होती नहीं

बिन सूरज के….. धूप खिलती नहीं

  बिन    प्राणों  के… हरकत   होती   नहीं
      बिन   प्रार्थना  के.. मुराद  पूरी   होती  नहीं

बिन जल के…. नदिया बहती नहीं

बिन    होठों   के…. मुस्कान  मिलती  नहीं
    बिन   आंखों  के… कायनात  होती  नहीं
       बिन  चांद  सितारों … के  रात होती नहीं

बिन मेघ… बरसात होती नहीं

  बिन    कवि… कविता  रचती  नहीं       बिन   हृदय… मोहब्बत   होती   नहीं         बिन   प्रकृति दुनिया  यह  होती  नहीं         बिन   प्रकृति. दुनिया  यह होती  नहीं

अपने पन की बगिया

अपने पन की बगिया सेसजा लेे अपना संसार फूलो की खुशबू से महकउठे घर और परिवार मां की ममता में बसता हैबच्चो का संसार जीवन जीना सिखाए पिताकी फटकार दादा दादी की कहानी में हैंजीवन जीने का सार भाई बहन के झगड़े में छिपा हैअटूट प्यार पति पत्नी का रिश्ता भी देता हैंघर को एक […]

अपने पन की बगिया

बाबासाहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर

23 सितम्बर
संकल्प दिवस

1917 में गुजरात के वडोदरा शहर में नौकरी करने आयें बाबा साहब को रहने के लिये मकान नहीं मिला, पारसी धर्मशाला में रूकना पड़ा, वहां से भी निकाल दियें गयें।
धर्मशाला में से बेईज्जत करकें धक्कें मारकें निकाल दिया।

और बाबा साहब को जब मुंबई वापिस जाना था तब गाड़ी (रेलवेे) समय के मुताबित 05 घंटा देरी से चल रही थी, तब एक पास ही कमाटी बाग था, वहां पर बाबासाहब अपने साथ हुयें अन्याय को याद करकें रोयें।

बाद मे संकल्प किया कि मुझे और मेरे समाज को इन्हीं जातियों के कारण अपमानित होना पड़ रहा है अब मैं जातियों को ही खत्म कर दूंगा और समान अधिकारो को प्राप्त करुंगा।

उन्होंने 23-09-1917 को जातियाँ तोड़कर एक समतामूलक समाज बनाने का संकल्प इसी दिन लिया।

आओं आज बाबा साहब को नमन करें, याद करें।
महामानव को कोटि-कोटि नमन।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

जय भीम जय भारत जय संविधान।

एक औरत कभी बोल ही nhi पाई

एक औरत ने क्या खूब कहा
छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी
माँ हमेशा झिडकती ,
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .

थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर
माँ फटकार लगाती
चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .

जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर
माँ जोर से डपटती
चुप रहो , दूसरे के घर जाना है .

ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर
सास ने ताने कसे ,
चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं .

गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर
उनकी डांट मिली ,
चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ?

नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर
कहा गया
चुप रहो ! अगर काम करना है तो

थोड़ी उम्र ढली जब , अब जब भी बोली तो
बच्चों ने कहा
चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना .

बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो
सबने कहा
चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है .

इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में
बहुत कुछ दबा पड़ा है
उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ
पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने
चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है
और मैं चुपचाप चुप हो गई
हमेशा के लिए .🌹🌹🌹🌹 🙏🙏

अपने पन की बगिया

अपने पन की बगिया से
सजा लेे अपना संसार

फूलो की खुशबू से महक
उठे घर और परिवार

मां की ममता में बसता है
बच्चो का संसार

जीवन जीना सिखाए पिता
की फटकार

दादा दादी की कहानी में हैं
जीवन जीने का सार

भाई बहन के झगड़े में छिपा है
अटूट प्यार

पति पत्नी का रिश्ता भी देता हैं
घर को एक नया आकार

नाज़ुक डोरी रिश्तों की मांगे
बस थोड़ा सा प्यार

जीवन भर की पूंजी है
एक सूखी परिवार

भीम पुत्री ममता आंबेडकर राइटर

कवित्री ममता आंबेडकर राइटर

अपने पन की बगिया से
सजा लेे अपना संसार

फूलो की खुशबू से महक
उठे घर और परिवार

मां की ममता में बसता है
बच्चो का संसार

जीवन जीना सिखाए पिता
की फटकार

दादा दादी की कहानी में हैं
जीवन जीने का सार

भाई बहन के झगड़े में छिपा है
अटूट प्यार

पति पत्नी का रिश्ता भी देता हैं
घर को एक नया आकार

नाज़ुक डोरी रिश्तों की मांगे
बस थोड़ा सा प्यार

जीवन भर की पूंजी है
एक सूखी परिवार

भीम पुत्री ममता आंबेडकर राइटर

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